बस्तर जिले में आदिवासियों की स्थिति एवं सशक्तिकरण
सियालाल नाग
सहायक प्राध्यापक राजनीति विज्ञान अध्ययनशाला] शहीद महेंद्र कर्मा विष्वविद्यालय] बस्तर] जगदलपुर।
*Corresponding Author E-mail: siyalalnag1@gmail.com
ABSTRACT:
भारतीय संस्कृति व परम्परा में आदिवासी समाज का एक विशेष स्थान रहा है। भारत मे विगत कुछ समय मे आदिवासी समाज की स्थिति मे काफी सुधर हुआ है। छत्तीसगढ राज्य का बस्तर जिला जो कि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है यहां आदिवासियों के सशक्तिकरण, विकास, शिक्षा एवं जीवन स्तर मे सुधार हेतु निरन्तर प्रयास किया जा रहा है। यहां आदिवासी समाज को अन्य समाजों से कम नहीं आंका जाता है। इस क्षेत्र में स्थानीय समस्या जैसे- नक्सलवाद, सुदूर ग्रामीण, पहाड़ी क्षेत्र, पिछड़ापन आदि होने के बावजूद आदिवासी समाज अपने अधिकारों के प्रति सजग हुई हैं एवं इनके जीवन स्तर में निरन्तर सुधार हो रहा है।
KEYWORDS: बस्तर जिले की आदिवासी समाज की स्थिति, जिले में लिंगानुपात, आदिवासी जीवन शैली, आदिवासी समाज की सामाजिक एवं आर्थिक विकास।
प्रस्तावना:-
आदिवासियो की स्थितिः-
जनजाति शब्द प्रायः भारत के आदिवासियों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक वैधनिक सम्बोधन है। आदिवासी दो शब्दों ‘आदि’ और ‘वासी’ से मिलकर बना है ! इसका अर्थ ‘मूल निवास’ है। संस्कृत ग्रंथों में इन्हे ‘अत्विका’ एवं ‘वनवासी’ कहा जाता है। भारत की जनसंख्या का एक बड़ा भाग आदिवासियों का है। छत्तीसगढ़ बस्तर जिले में मुख्य रूप से गोंड, मुरिया, माड़िया, हल्बा, बैगा, भतरा आदि प्रमुख जनजातियां निवास करती हैं।
चंदा समिति ने सन् 1960 में आदिवासियों के लिए पाँच मानक निर्धरित किये जिसमें भौगोलिक एकीकरण, विशिष्ट संस्कृति, पिछड़ापन, संकुचित स्वभाव आदि लक्षण शामिल हैं। प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में आदिवासियों की स्थिति रहा है एवं भारत की आधी आबादी के प्रति समाज का उपेक्षित व्यवहार रहा है। कालान्तर में भारत भूमि पर कई बुद्धिजीवी एवं महापुरूषों ने जन्म लिया। जिन्होंने आदिवासियों के प्रति हो रहे अत्याचारों को समाप्त करने का प्राण लेते हुए समाज में प्रचलित कुप्रथाओं को समाप्त करने का प्रयास किया। इसी तरह समाज में आदिवासियों के प्रति प्रचलित विभिन्न तरह की कुप्रथाएं धीरे-धीरे समाप्त हो रहीं हैं तथा आदिवासी समाज मुख्यधारा से जुड़ता जा रहा है। अब विकास का चक्र परिवर्तित हो गया है। विकास की इस परिवर्तित व्यवस्था में निरंतर वृद्धि हो रही है। एक वास्तविकता यह भी है कि आज भी कुछ प्रतिशत् आदिवासियों को छोड़कर शेष आदिवासी समस्त क्षेत्रों मे पीछे हैं। कभी पारिवारिक तो कभी सामाजिक, राजनीतिक स्तर पर ही समाज को आगे बढ़ने से रोक दिया जाता है। आवश्यकता है कि समाज में मानव अधिकारों को जानकर उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में प्रोत्साहित करने एवं उनके खिलाफ हो रहे शोषण को खत्म करने का प्रयास करे, ताकि हमारे राष्ट्र एवं समाज को समान रूप से अधिकार प्राप्त हो सके। वर्तमान समय में आदिवासी समाज सभी कार्य कर रहा हैं आदिवासी समाज सशक्तिकरण के नये आयाम को प्राप्त किया है । जहां आदिवासियों को सीमित क्षेत्रो तक ही सिमटा हुआ समझा जाता था, वहीं आज इन्हीं समाज ने शोषण की जंजीरो को तोड़कर अपने क्षेत्रो एवं समाज, राज्य में एवं राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा से राष्ट्र को गौरवान्वित किया है। जिसमें सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक सभी क्षेत्रों में आदिवासियों की भागीदारी बढ़ी है।
अध्ययन का उद्देश्यः-
1. बस्तर जिले की आदिवासियों की जीवन शैली का अध्ययन करना।
2. आदिवासी समाज की सशक्तिकरण का अध्ययन करना।
3. आदिवासी समाज की आर्थिक स्थिति का अध्ययन करना।
4. आदिवासी समाज से संबंधित योजनाओं का अध्ययन करना।
अध्ययन हेतु परिकल्पना:-
1. शासन/सरकार द्वारा संचालित योजनाएं आदिवासी समाज की सामाजिक व आर्थिक स्थिति में सुधार हेतु सहयोगी है।
2. मानव संसाधन विकास में आदिवासी समाज महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।
3. आदिवासी समाज में अशिक्षा, अज्ञानता इनके जीवन स्तर-सुधर में मुख्य बाधाएं है।
अध्ययन का क्षेत्र एवं प्राक्कल्पना:-
अध्ययन क्षेत्र के रूप में बस्तर जिले के सातो ब्लॉक- जगदलपुर, बस्तर, बकावण्ड़, बास्तानार, दरभा, लौहाण्ड़ीगुड़ा, तोकापाल, आदि को लिया गया है एवं प्रस्तुत अध्ययन हेतु ऐतिहासिक अनुसंधान विधि का उपयोग किया गया है।
जिले में आदिवासी जनसंख्या, लिंगानुपात एवं साक्षरता दर:-
छत्तीसगढ़ राज्य की कुल जनसंख्या जनगणना 2011 के अनुसार 2,55,45,198 है। कुल जनसंख्या में आदिवासी जनसंख्या 78.22 प्रतिशत है। आदिवासी जनसंख्या के आधार पर छत्तीसगढ़ का देश में सातवाँ तथा जनजातीय प्रतिशत के आधार पर देश में आठवां स्थान है। कुल जनसंख्या में पुरूष जनसंख्या 1,28,32,895 व महिला जनसंख्या 1,27,12,303 है। छत्तीसगढ़ की साक्षरता दर 70.28 है। जिसमे आदिवासी साक्षरता 50.11 प्रतिशत है। छत्तीसगढ़ का लिंगानुपात 991 है जहां आदिवासी लिंगानुपात 1020 है। जिसमें बस्तर जिले की जनसंख्या सन् 2011 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या 8,33,318 है, जिसमें ग्रामीण जनसंख्या 6,91,934 तथा नगरीय जनसंख्या 1,35,384 है, इसमें पुरूष 4,12,981, तथा महिला 4,20,337 है। बस्तर की जनसंख्या में 70 प्रतिशत जनजातीय समुदाय, जो छत्तीसगढ़ की कुल जनजातीय जनसंख्या का 26.76 प्रतिशत है। जिसमें गोंड़, मारिया, मुरिया, भतरा, हल्बा, धुरूवा समुदाय हैं।
जनगणना 2011 के अनुसार भारत देश व छत्तीसगढ़ राज्य में जनजातियो की जनसंख्या की स्थिति
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जनगणना 2011 |
कुल जनसंख्या |
कुल जनसंख्या में जनजातियों की जनसंख्या |
कुल जनसंख्या में जनजातियों का प्रतिषत |
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भारत देष की जनसंख्या |
1]21]05]69]573 |
10]42]30]040 |
8-61 |
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छत्तीसगढ़ राज्य की जनसंख्या |
2]55]45]198 |
78]21]940 |
30-62 |
स्त्रोतः- भारत एवं छत्तीसगढ़ राज्य की जनगणना वर्ष 2011 के आकड़ों के अनुसार
छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में जनजातियों की जनसंख्या जनगणना 2011, को निम्न सारणी के माध्यम से देखा जा सकता है।
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जिले का नाम |
कुल जनसंख्या |
कुल जनसंख्या में जनजातियों की जनसंख्या |
कुल जनसंख्या में जनजातियों का प्रतिषत |
कुल जनसंख्या में साक्षरता का प्रतिषत |
कुल जनसंख्या में जनजातियों का लिंगानुपात |
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बस्तर |
8]34]375 |
5]20]817 |
62-42 |
53-15 |
1035 |
स्त्रोत:- छत्तीसगढ़ जनगणना वर्ष 2011 के आकड़ों के अनुसार
बस्तर जिले में आदिवासी समाज की जीवन शैलीः- बस्तर जिले में आदिवासी समाज की जीवन शैली को निम्न बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है-
1. यहां की आदिवासी समाज ज्यादातर कृषि संबंधी कार्य करता हैं।
2. घर के एक निश्चित भू-भाग में फल-सब्जियों को उगाया जाता है व स्थानीय बाजार में जाकर इसका विक्रय किया जाता है।
3. घर पर ही मुर्गी-मुर्गा, गाय, बकरी, सूकर आदि का पालन करके इनके द्वारा प्राप्त उत्पादों से जीविकोपार्जन किया जाता है।
4. आदिवासी समाज अधिकतम सघन वनों एवं जंगलो के बीच ग्रामीण अंचल में बसने के कारण जंगलों से प्राप्त होने वाले वनोत्पादों जैसे- तेन्दुपत्ता, चिरौंजी, महुआ, कंदमूल, हर्रा, भेलवा आदि को जंगलों से प्राप्त कर इनका विक्रय स्थानीय बाजारों में कर देता हैं।
5. विभिन्न तरह की हस्तशिल्प कलाओं जैसे- लौह शिल्प, मिट्टी शिल्प, पत्ता शिल्प, बांस शिल्प, लकड़ी शिल्प आदि मे पारंगत होने के कारण इन हस्तशिल्प संबंधी वस्तुओं के विक्रय द्वारा भी जीविकोपार्जन किया जाता है।
6. यहां की आदिवासी समाज निर्माणी श्रमिक के रूप में भी कार्य करता है।
7. विकसित होते हुए सामाजिक परिवेश का जनजातीय समाज में भी प्रभाव पड़ा है व साक्षरता दर भी बढ़ी है विभिन्न तरह की सरकारी/प्राइवेट नौकरियों में इनका चयन हो रहा है, जिससे जीवन स्तर भी सुधर रहा है।
8. आदिवासी अपने समाज की विभिन्न तरह की लोक संस्कृतियों व कलाओं को सहेजे हुए हैं जिसका किसी त्यौहार या खास समय पर प्रस्तुतीकरण किया जाता है।
छत्तीसगढ़ राज्य में आदिवासी समाज का सशक्तिकरण एवं मानव संसाधान विकास में सहभागिता:-
मानवीय संसाधन से तात्पर्य किसी देश के लोगों की सक्षमता का विकास और उसके दोहन से है। आदिवासी जनसंख्या का एक बड़ा भाग छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर में निवास करता है। यह क्षेत्र अब भी पिछडे़ हुए क्षेत्रो में आता है। पिछडे़ हुए क्षेत्रों में आने का कारण मुख्यतः शिक्षा का अभाव, कार्यकुशलता में कमी, परम्परागत जीवन शैली, नक्सली समस्या, आधरभूत सुविधओं के विकास में कमी जैसे- शुद्धजल, बिजली, सड़क, स्वास्थ्य सेवाओं आदि का इन तक नहीं पहुंच पाना है। नक्सली समस्या के कारण भी बस्तर में मानव संसाधन विकास की गति कम है। नक्सलियों द्वारा आदिवासी समाज का ‘ब्रेनवॉश’ कर प्रशासनिक व्यवस्था के प्रति अविश्वास उत्पन्न किया जाता है। अतः आवश्यकता है कि आदिवासी क्षेत्रों में मूलभूत आवश्यकताओं जैसे- बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा की पहुँच आसान हो जिसमें आदिवासी समाज स्वयं के समग्र विकास पर ध्यान केन्द्रित कर सके। कुल मिलाकर भूमण्डलीकरण के युग में ज्ञानवान समाज या आधुनिक समाज से कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए बेहद जरूरी है, कि जो आदिवासी क्षेत्र हैं, वहां मानव संसाधन विकास हो। प्रतिस्पर्धा करने के लिए उस क्षेत्र में अच्छे अभिशासन के लिए, सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के लिए, ज्ञानवान समाज के निर्माण के लिए किसी भी प्रकार की जानकारी जब तक लोग समझेंगे नहीं, तब तक इसका इस्तेमाल नही कर पायेगें। छोटी से छोटी चीजों के लिए इन्हें प्रशिक्षित होना जरूरी है। शिक्षा, तकनीकी आदि ऐसे माध्यम हैं जिनसे ये अपना विकास कर पाएंगे तथा रोजगार के अवसर भी इन्हे प्राप्त होंगे। सशक्तिकरण से तात्पर्य किसी व्यक्ति की उस क्षमता से है जिससे उसमें यह योग्यता आ जाती है कि वो अपने जीवन से जुड़े सभी निर्णय स्वयं ले सके।
छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज सशक्तिकरण की दिशा में शासन एवं आदिम जाति एवं अनुसूचित जनजाति विभाग द्वारा निम्न कल्याणकारी योजनाएं संचालित की जा रही है-
1. आदिवासी संस्कृति का परीक्षण एवं विकास योजना:- यह योजना वर्ष-2015-16 से संचालित है इस योजनांतर्गत आदिवासियों के पूजा एवं श्रद्धा स्थलों के निर्माण एवं मरम्मत हेतु राशि 50,000 रूपये एवं आदिवासियों के सांस्कृतिक वाद्ययंत्रा, खरीदने हेतु अनुदान स्वरूप प्रति दल रू. 10,000 की सहायता की जाती है।
2. कौशल विकास योजना:- यह योजना वर्ष-2013 से संचालित है इस योजनांतर्गत बेरोजगारों को स्वरोजगार के प्रोत्साहन देने हेतु लाइवलीहुड कॉलेज की स्थापना की गई है, जिसमे विभिन्न श्रेणियों व क्षेत्रो में प्रशिक्षण दिया जाता है।
3. निःशुल्क पाठ्य पुस्तकों का प्रदाय:- आदिवासियों का साक्षरता प्रतिशत् बढ़ाने तथा प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर पर बालक-बालिकाओं मे शिक्षा के प्रोत्साहन हेतु पाठ्य पुस्तकों का निःशुल्क प्रदाय किया जाता है।
4. छात्रावास योजना:- छात्र/छात्राओं को अच्छे परिवेश में शिक्षा की सुविधा हेतु यह योजना संचालित की जा रही है।
5. एकलव्य आवासीय विद्यालय:- यह योजना भी अच्छे परिवेश में छात्रा-छात्राओं की शिक्षा मे सुधार हेतु संचालित की जा रही है।
बस्तर जिला मे आदिवासी समाज की समस्याएं:-
1. शिक्षा व अज्ञानता संबधी समस्या:- शिक्षा की कमी व अज्ञानता के कारण आदिवासी समाज द्वारा एकात्रित एवं उत्पादित सामाग्रियों को बिचौलियों द्वारा कम कीमत देकर खरीदा जाता है जिससे ये प्रायः ठगी का शिकार हुआ करता हैं।
2. स्वास्थ्य संबंधी समस्या:- सुदूर वन क्षेत्रों में निवास होने के कारण आदिवासी समाज को बीमारी, दुर्घटना, में गांव के ही स्थानीय बैगा व स्थानीय उपचार पर निर्भर रहना पड़ता है, हालांकि आज हर ग्राम पंचायतों में स्वास्थ्य केन्द्र स्थापित किये गए हैं फिर भी कच्ची पथरीली सड़क होने के कारण बेहतर स्वास्थ्य सुविधा ग्रामीण क्षेत्रों से कोसों दूर होती है।
3. शुद्ध पेयजल की समस्या:- आदिवासी क्षेत्रों में प्रायः शुद्ध पेय जल नहीं मिल पाता है। सुदूर आदिवासी क्षेत्रों में आज भी लोग पेय जल हेतु प्राकृतिक स्रोतों जैसे- तालाबो एवं कुओं पर निर्भर हैं। तालाबो-कुओ की साफ-सफाई नहीं होने के कारण स्थिर पानी का उपयोग करने से कई तरह की बीमारियां होने का खतरा बना रहता है।
4. सड़क व बिजली की समस्या:- ग्रामीण अंचल एवं सघन वन क्षेत्रों में निवास होने के कारण सड़क व बिजली संबंधी समस्या का सामना आदिवासी समाज को करना पड़ता है। आज भी कई गांव ऐसे हैं जहां बिजली-सड़क की व्यवस्था नहीं हो पायी है।
5. नक्सली समस्या:- बस्तर नक्सली समस्या के कारण पूरे भारत वर्ष में जाना जाता है। आदिवासी समाज को इन क्षेत्रों में हर समय नक्सली समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
6. बाल विवाह संबंधी समस्या:- आदिवासी क्षेत्रों मे अधिकांश आदिवासी समाज का विवाह, विभिन्न तरह की कुरीतियां व्याप्त होने के कारण कम उम्र में ही शादी करा दिया जाता है।
7. असामाजिक तत्वों की जालसाजी मे प्रायः फंसने संबंधी समस्या:- आदिवासी समाज भोले-भाले, सीधे-सादे होने के कारण बाहरी असामाजिक तत्वों के बहकावे में आ जाती हैं। ज्यादा पैसे देने का लालच देकर इनके मूल स्थान से दूसरे राज्यों में मजदूरी के लिए ले जाया जाता है। जहां वे प्रायः शोषण का शिकार बनता हैं।
8. योजनाओं की जानकारी न होने संबंधी समस्या:- सरकारी योजनाओं की जानकारी के अभाव में आदिवासी समाज प्रायः अपने लाभ से वंचित रह जाता हैं।
9. ऋण संबंधी समस्या:- स्वरोजगार हेतु इन आदिवासी समाज को ऋण संबंधी समस्या का सामना करना पड़ता है। साहूकार से ज्यादा ब्याज दर पर कम ऋण दिया जाता है। हांलाकि सरकार द्वारा कई योजनाएं संचालित की जा रही हैं जिसमें इन आदिवासी समाज को सस्ते ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराया जाता है, परन्तु ऋण देने हेतु जो शर्तें सरकार द्वारा रखी जाती हैं उनसे इन आदिवासियों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
10. शौचालय संबंधी समस्या:- हालांकि वर्तमान में सरकार द्वारा सभी ग्रामीण क्षेत्रों मे शौचालय का निर्माण किया जा रहा है परन्तु आज भी कई सुदूर आदिवासी क्षेत्र ऐसे हैं जहां कुरीतियां व्याप्त होने के कारण इन आदिवासियों को शौच हेतु खुले में जाना पड़ता है।
11. पलायन संबंधी समस्या:- आदिवासी समाज रोजगार की तलाश में शहरी जीवन शैली से आकृष्ट होकर अपने मूल क्षेत्रों से पलायन कर जाती हैं जो इन आदिवासी क्षेत्रों की एक गंभीर समस्या बनी हुई है।
बस्तर जिला मे आदिवासी समाज की समस्याओं को दूर करने हेतु उपाय/सुझावः-
1. बस्तर जिले के आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा को बढ़ावा देना होगा जिससे आदिवासी समाज सशक्त बन सके।
2. ग्रामीण क्षेत्रों तक पक्की सड़कों का निर्माण, बिजली, शुद्ध पेयजल, चिकित्सा आदि की सुचारू व्यवस्था करनी होगी।
3. अपने अधिकारों के प्रति इन्हें जागरुक करना होगा।
4. स्थानीय शासन/प्रशासन को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे इनकी समस्याओं का तत्काल निराकरण हो सके एवं सरकार द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं का लाभ इन्हें प्राप्त हो रहा है कि नहीं, इसका ऑकलन, केवल आकड़ों से करने की अपेक्षा स्वयं कार्य स्थल पर इनसे इनकी समस्याओं को जानकर करना होगा।
5. जिन बिचौलियों एवं व्यवसायियों से प्रायः ठगी का शिकार होते हैं। उनके विरुद्ध सख्त कानूनी कार्यवाही करने की आवश्यकता होगी।
6. इन क्षेत्रों मे नक्सली समस्या को समाप्त करने हेतु ठोस कदम उठाने होंगे साथ ही साथ इन आदिवासियों को एकजुट कर इनके विचारों की अभिव्यक्ति को भी प्राथमिकता देनी होगी।
7. प्रायः देखा जाता है कि जनजातियां अपने परिवेश वन-जंगल के बीच खुश रहती हैं व जीवनयापन करना चाहती हैं। इस कारण न केवल सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य सुविधा को बढ़ावा देना होगा, अपितु यह भी ध्यान रखना होगा कि आदिवासियों की सामाजिक व्यवस्था में दखल न हो।
8. आदिवासी संस्कृति, सभ्यता, कलाएं भारत की सांस्कृतिक व पुरातन धरोहर हैं इस कारण इसका संरक्षण/संवधर्न करना हमारा कर्तव्य है।
9. बैंको के माध्यम से ऋण की व्यवस्था को और अधिक सुगम बनाना होगा।
10. इन क्षेत्रों में स्वरोजगार को बढ़ावा देने हेतु विभिन्न तरह के क्षेत्रो में प्रशिक्षण देने की प्रक्रिया को और अधिक सुगम बनाना होगा, जिससे इनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो व जीविकोपार्जन का एक सशक्त जरिया बन सके।
निष्कर्षः -
उपरोक्त अध्ययन से निष्कर्ष निकलता है कि छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले की आदिवासी समाज की सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रो मे अद्यतन स्थिति क्या है, साथ ही आदिवासी सशक्तिकरण, मानव संसाधन विकास में इनकी क्या भूमिका है। आदिवासी समाज की उन समस्याओं को जानने में सहायता प्राप्त होगी जो उनके विकास में बाधा उत्पन्न कर रहीं हैं। यह भी ज्ञात होता है कि बस्तर जो अपनी आदिवासी संस्कृति, सभ्यता, हस्तशिल्प कला के लिए राष्ट्रीय ही नहीं अपितु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ख्याति प्राप्त है, यहां आदिवासी समाज की स्थिति में निरन्तर सुधार हो रहा है जो अनेकों बाधाओं, समस्याओं का सामना कर प्रगति के मार्ग पर अग्रसर हैं।
संदर्भ ग्रन्थ:
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3. शर्मा, ब्रम्हदेव, (1980) आदिवासी विकास एक सैद्धांतिक विवेचन, मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी, भोपाल, पृष्ठ संख्या 110
4. एल्विन, वेरियर, (1951) द ट्राइबल आर्ट ऑफ मिडिल इंडिया, ऑक्सपफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, पृष्ठ संख्या 135
5. जगदलपुरी, लाला, (2016) बस्तर इतिहास एवं संस्कृति, मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी, पृष्ठ संख्या 126
6. निरगुणे, बंसत, (2005) लोक संस्कृति, मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी, भोपाल, पृष्ठ संख्या 76
7. भारत की जनगणना 2011 के आकड़ों का समावेश किया गया है।
8. गुप्ता, मदललाल, (2003) छत्तीसगढ़ की संस्कृति एवं लोक आयाम के विभिन्न स्वरूप, भारतेन्दु साहित्य समिति, बिलासपुर, पृष्ठ संख्या 2
9. मेहता, चंद्र प्रकाश, (2006) आदिवासी विकास एवं प्रथाएं, डिस्कवरी पब्लिशिंग, नई दिल्ली, पृष्ठ संख्या 89
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11. मिश्र, रोहित, (2011) समाज कार्य एवं महिला सशक्तिकरण, रॉयल बुक कम्पनी, लखनऊ, पृष्ठ संख्या 18
12. शर्मा, पी.डी., (2017) महिला साशाक्तिकरण करण और नारीवाद, रावत पब्लिकेशन, जयपुर, पृष्ठ संख्या 56
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14. हसनैन, नदीम, (1997) जनजातीय भारत, जवाहर पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स, पृष्ठ संख्या 93
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Received on 28.04.2025 Revised on 27.05.2025 Accepted on 04.07.2025 Published on 22.08.2025 Available online from September 05, 2025 Int. J. Ad. Social Sciences. 2025; 13(3):135-140. DOI: 10.52711/2454-2679.2025.00021 ©A and V Publications All right reserved
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